उलझी गांठों को खोलूँ मैं , टूटी कड़ियों को जोडूं ! उलझी गांठों को खोलूँ मैं , टूटी कड़ियों को जोडूं !
जीने के लिए रोज़ मर रहे थे, जीने के लिए रोज़ मर रहे थे,
तुम हो ऐसे वीर कि शिला को पिघला सकते होंहै तुम में शक्ति कि पानी में आग लगा सकते हों, तुम हो ऐसे वीर कि शिला को पिघला सकते होंहै तुम में शक्ति कि पानी में आग लगा सकते...
जल छू के लो प्रण, बुन डालो मधुर तरंगिनि। जल छू के लो प्रण, बुन डालो मधुर तरंगिनि।
प्रस्तुत काव्य कवयित्री लिखित एवं निर्मित "पावन पौधा प्रीत का" नामे काव्यसंग्रह का संग्रहित भाग हैं प्रस्तुत काव्य कवयित्री लिखित एवं निर्मित "पावन पौधा प्रीत का" नामे काव्यसंग्रह...
कि ये सब गवाह हैं, जिम्मेदार हैं, बस मेरी ख़ामोशी के, कि ये सब गवाह हैं, जिम्मेदार हैं, बस मेरी ख़ामोशी के,